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ग़ज़ल
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
शम्अ' भी मुज़्तरिब है पतंगा भी मुज़्तरिब
पहुँचे हैं सोज़-ए-ग़म के शरारे कहाँ कहाँ
अब्दुल्लतीफ़ शौक़
ग़ज़ल
देख कर शाहीं को पिंजरे में पतिंगा कुछ कहे
जानता वो भी है किस में क़ुव्वत-ए-पर्वाज़ है
मयंक अवस्थी
ग़ज़ल
कहे कौन उसे पतिंगा जो है शो'ले पर धुआँ सा
तुझे ले उड़े हैं कितना तिरे पर ज़रा ज़रा से
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
दोज़ख़ पे क्यूँ न हो दिल-ए-'बीमार' ताना-ज़न
आतिश से इश्क़ की है पतिंगा यहाँ गिरा
शैख़ अली बख़्श बीमार
ग़ज़ल
उस के कूचे की तरफ़ था शब जो दंगा आग का
आह से किस की पड़ा था वाँ पतिंगा आग का