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ग़ज़ल
किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे
मल्लाहो तुम परदेसी को बीच भँवर में मारोगे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
गुज़रे हुए दिलकश लम्हों की भूली हुई याद ऐसी आई
जैसे कोई पीतम परदेसी सोते में अचानक आ जाए
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
परदेसी सूनी आँखों में शो'ले से लहराते हैं
भाबी की छेड़ों सा बादल आपा की चुटकी सा चाँद
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
क्या कम है करम ये अपनों का पहचानने वाला कोई नहीं
जो देस में भी परदेसी हैं उन हम-वतनों की याद आई
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
शौकत परदेसी
ग़ज़ल
लोगो! हम परदेसी हो कर जाने क्या क्या खो बैठे
अपने कूचे भी लगते हैं बेगाने बेगाने से