आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "پرس"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "پرس"
ग़ज़ल
राज़-ए-दरून-ए-पर्दा ज़े-रिंदान-ए-मस्त पुर्स
सालिक है क्यूँ हिजाब-ए-शुहूद-ओ-वजूद में
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
मुझ रू-सियह की है ये दुआ वक़्त-ए-बाज़-पुर्स
रखिएगा अपने लुत्फ़-ओ-करम पर निगाह आप
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
चैन कैसा क़ब्र में सर पर है रोज़-ए-बाज़-पुर्स
दास्तान-ए-दर्द-ए-हस्ती को है दोहराना हनूज़
मानी जायसी
ग़ज़ल
रिंदों से बाज़-पुर्स की पीर-ए-मुग़ाँ से दिल-लगी
आज ये मोहतसिब ने भी पी है कहीं शराब क्या
अली जवाद ज़ैदी
ग़ज़ल
वो मेरे दो नए पैसे ही अपने पर्स में रख ले
कि उस के सब्र का पैमाना अब लबरेज़ है साक़ी