aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "پرند"
फ़ज़ा-ए-शौक़ में उस की बिसात ही क्या थीपरिंद अपने परों का निशाना हो गया है
अब जो रिश्तों में बँधा हूँ तो खुला है मुझ परकब परिंद उड़ नहीं पाते हैं परों के होते
उड़े तो फिर न मिलेंगे रफ़ाक़तों के परिंदशिकायतों से भरी टहनियाँ न छू लेना
शाख़ से उड़ गया परिंद है दिल-ए-शाम-ए-दर्द-मंदसहन में है मलाल सा हुज़्न सा आसमाँ में है
ये किस ने बाग़ से उस शख़्स को बुला लिया हैपरिंद उड़ गए पेड़ों ने मुँह बना लिया है
उस दिन की जब बारिश होगी कौन बचेगा हम-सफ़रोफूल परिंद चराग़ जज़ीरे कंकर पत्थर भीगेंगे
ऊपर जो परिंद गा रहा हैनीचे का मज़ाक़ उड़ा रहा है
जहाँ सुकून मिला बैठ जाते थे हम लोगपरिंद की तरह हम भी शजर बदलते रहे
लपक के आते हैं सीने की सम्त तीर ऐसेपरिंद शाख़ पे जैसे ठिकाने ढूँढते हैं
फ़ित्ने अजब तरह के समन-ज़ार से उठेसारे परिंद शाख़-ए-समर-दार से उठे
वो जंगलों से निकाले हुए ग़रीब परिंदजहाँ गए उन्हें मस्कन मिला उक़ाबों का
परिंद शाख़ पे तन्हा उदास बैठा हैउड़ान भूल गया मुद्दतों की बंदिश में
हवा दरख़्तों से जब गले मिल के रो रही होपरिंद लम्बे सफ़र पे जाएँ तो लौट आना
किसी परिंद की चीख़ों ने संग-बारी कीसुकूत-ए-शाम का शीशा बिखर गया मुझ में
'बाबर' ये परिंद थक गए थेबैठे हैं जो ख़ाक पर सिमट कर
ढूँडेंगे अब परिंद कहाँ शाम को पनाहजंगल की आग खा गई सब डालियाँ दरख़्त
परिंद तुम पर हँसा करेंगे कहा था तुम सेन तुम दरख़्तों पे नाम लिखना वही किया ना
ये परिंद पर्वार्दा है खुली फ़ज़ाओं कासब्ज़ बाग़ दिखला कर ज़ेर-ए-दाम कर लेना
मुझे तो इस से कई आदमी बनाने थेपरिंद भी न बने दस्तियाब मिट्टी के
वो शाख़ शाख़ नीले पीले लाल रंग क्या हुएतमाम दश्त के परिंद ज़ाग़ बन के रह गए
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