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ग़ज़ल
जब हिन्दी सिंधी पंजाबी इस्लाम में आ कर एक हुए
ऐ फ़िरक़ा-परस्तो बाज़ आओ फिर फ़िरक़ा-परस्ती ला'नत है
अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी
ग़ज़ल
जो फ़र्क़ समझते हैं अब तक हिन्दी सिंधी पंजाबी में
उन 'अक़्ल के पूरे लोगों से लड़ने की हिमाक़त कौन करे
अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी
ग़ज़ल
क्या जानिए ये क्या खोएगा क्या जानिए ये क्या पाएगा
मंदिर का पुजारी जागता है मस्जिद का नमाज़ी सोता है
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
था 'ज़ौक़' पहले देहली में पंजाब का सा हुस्न
पर अब वो पानी कहते हैं मुल्तान बह गया
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
पर्दे पर्दे में मोहब्बत दुश्मन-ए-जानी हुई
ये ख़ुदा की मार क्या ऐ शौक़-ए-पिन्हानी हुई
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
किसी सूरत नुमूद-ए-सोज़-ए-पिन्हानी नहीं जाती
बुझा जाता है दिल चेहरे की ताबानी नहीं जाती