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ग़ज़ल
लड़ते लड़ते आख़िर इक दिन पंछी की ही जीत हुई
प्राण पखेरू ने तन छोड़ा ख़ाली पिंजरा छूट गया
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
जिस चिड़िया ने पिंजरा तोड़ा इश्क़ किया आज़ाद हुई
उस चिड़िया के पँख निहारें और कहें ये तुम ही हो
अभिसार गीता शुक्ल
ग़ज़ल
मेरा पिंजरा खोल दिया है तुम भी अजीब शिकारी हो
अपने ही पर काट लिए हैं मैं भी अजीब परिंदा हूँ