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ग़ज़ल
मोहब्बत जज़्बा-ए-ईसार से परवान चढ़ती है
ख़ुलूस-ए-दिल न हो तो दोस्ती से कुछ नहीं होता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
मैं तो नाम का माली हूँ फूलों का रखवाला हूँ
जिस ने बेल लगाई है ख़ुद परवान चढ़ाएगा