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ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
मिरे अशआ'र ऐ 'इक़बाल' क्यूँ प्यारे न हों मुझ को
मिरे टूटे हुए दिल के ये दर्द-अंगेज़ नाले हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हुस्न-ए-बे-परवा को अपनी बे-नक़ाबी के लिए
हों अगर शहरों से बन प्यारे तो शहर अच्छे कि बन
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
प्यारों से मिल जाएँ प्यारे अनहोनी कब होनी होगी
काँटे फूल बनेंगे कैसे कब सुख सेज बिछौना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़ों की तो फ़ितरत ही है लेकिन मिरे प्यारे
ज़ुल्फ़ों से ज़ियादा तुम्हीं बल खाए चलो हो
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
कहीं तो हैं जो मिरे ख़्वाब देखते हैं 'ज़फ़र'
कोई तो हैं जिन्हें प्यारे नहीं समझता हूँ
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
नहीं ये है गुलाल-ए-सुर्ख़ उड़ता हर जगह प्यारे
ये आशिक़ की है उमड़ी आह-ए-आतिश-बार होली में