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ग़ज़ल
ख़ुदा शाहिद बुतो दो-जग से ये सौदा है निर्वाला
मैं दो बादाम-ए-चश्म-ए-लुत्फ़ पर दिल बेचने वाला
वली उज़लत
ग़ज़ल
हाँ उसी दिन धूप में हरियालियाँ शामिल हुईं
इस ज़मीं की ज़र्दियों में लालियाँ शामिल हुईं