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ग़ज़ल
कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
मुझे अपने रूप की धूप दो कि चमक सकें मिरे ख़ाल-ओ-ख़द
मुझे अपने रंग में रंग दो मिरे सारे रंग उतार दो
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
दरिया पर क़ब्ज़ा था जिस का उस की प्यास अज़ाब
जिस की ढालें चमक रही थीं वही निशाना है