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ग़ज़ल
मेरी मर्ज़ी थी मैं ज़र्रे चुनता या लहरें चुनता
उस ने सहरा एक तरफ़ रखा और दरिया एक तरफ़
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
याद हैं 'ग़ालिब' तुझे वो दिन कि वज्द-ए-ज़ौक़ में
ज़ख़्म से गिरता तो मैं पलकों से चुनता था नमक
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
जीवन भेदन की चिंता छोड़ो आओ कुछ इस पर बात करें
हम धरती के फंदे में हैं धरती किस के जाल में है