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ग़ज़ल
बाँट के अपना चेहरा माथा आँखें जाने कहाँ गई
फटे पुराने इक एल्बम में चंचल लड़की जैसी माँ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
लिटा के सीने पे चंचल को प्यार से हर-दम
मैं गुदगुदाता था हँस हँस वो ज़ोफ़ खोता था
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ज़िद्दी वहशी अल्लहड़ चंचल मीठे लोग रसीले लोग
होंट उन के ग़ज़लों के मिसरे आँखों में अफ़्साने थे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
बरखा की तो बात ही छोड़ो चंचल है पुर्वाई भी
जाने किस का सब्ज़ दुपट्टा फेंक गई है धानों पर
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
कि अर्ज़ 'नज़ीर' इक बोसे की जब हँस कर चंचल बोला यूँ
इस मुँह से बोसा लीजिएगा क़ुर्बान तुम्हारी सूरत के
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
'नज़ीर' ऐसा जो चंचल दिलरुबा बहरूपिया होवे
तमाशा है फिर ऐसे शोख़ से सौदे का पट जाना
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
सदियों के दिल की धड़कन है उन की जागती आँखों में
ये जो फ़लक पर हँसमुख चंचल जगमग जगमग तारे हैं
जमील मलिक
ग़ज़ल
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
झुके हुए पेड़ों के तनों पर छाप है चंचल धारे की
हौले हौले डोल रही है घास नदी के किनारे की
ज़ेब ग़ौरी
ग़ज़ल
तू वो महबूब चंचल है कि बार-ए-नाज़ को तेरे
बग़ैर-अज़-मुस्तफ़ा कोई उठा सकता है क्या क़ुदरत