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ग़ज़ल
کوئی پھرتے ٹھنڈ ہور بارے میں کوئی پڑتے ہیں جا غارے میں
کوئی تیرے پرت کے مارے جا جا مارے چکنا چور ہوئے
क़दीमी
ग़ज़ल
चकना-चूर हुआ ख़्वाबों का दिलकश दिलचस्प आईना
टेढ़ी तिरछी तस्वीरें हैं टूटे-फूटे दर्पन में
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
झूटे वा'दे सुनते सुनते सपने चकना-चूर हुए
मायूसी बे-ज़ारी दिल में मेहमाँ होती जाती है
अहमद शाहिद ख़ाँ
ग़ज़ल
मिरी ख़ुद्दारियाँ बद-कैफ़ियों से दब नहीं सकतीं
अगरचे शीशा-ए-दिल अपना चकना-चूर है साक़ी