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ग़ज़ल
चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है
जब तुम मुझे अपना कहते हो अपने पे ग़ुरूर आ जाता है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
मुझ को ख़राब कर गईं नीम-निगाहियाँ तिरी
मुझ से हयात ओ मौत भी आँखें चुरा के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
हवाएँ ज़ोर कितना ही लगाएँ आँधियाँ बन कर
मगर जो घिर के आता है वो बादल छा ही जाता है
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
फिर अध-खुला सा कोई दरीचा मिरे तसव्वुर पे छा रहा है
ये खोया खोया सा चाँद जैसे तिरी कहानी सुना रहा है
इक़बाल अशहर
ग़ज़ल
इक आस जो दिल की टूट गई फिर दिल की ख़ुशी बाक़ी न रही
जैसे कि अँधेरे घर का दिया गुल हो तो अंधेरा छा जाए
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
मैं जब निकला चमन से शबनम आब-ए-गुलिस्ताँ रोया
उदासी छा गई ऐसी ख़ुद आख़िर बाग़बाँ रोया