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ग़ज़ल
दर्द का कहना चीख़ ही उट्ठो दिल का कहना वज़्अ निभाओ
सब कुछ सहना चुप चुप रहना काम है इज़्ज़त-दारों का
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इश्क़ से बेज़ार दिल ये चीख़ कर कहने लगा
इश्क़ छोड़ो आशिक़ों तन्हाइयाँ ही ठीक हैं
ए.आर.साहिल "अलीग"
ग़ज़ल
जो ख़ूँ रोती है आँखें सारा मंज़र चीख़ उठता है
बिछड़ कर मुझ से कोई मेरे अंदर चीख़ उठता है