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ग़ज़ल
कहीं ख़ून-ए-दिल से लिखा तो था तिरे साल-ए-हिज्र का सानेहा
वो अधूरी डाइरी खो गई वो न-जाने कौन सा साल था
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
वरक़ वरक़ पे डाइरी में आँसुओं का नम भी है
ये सिर्फ़ बारिशों से भीगे काग़ज़ात ही नहीं