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ग़ज़ल
यकायक मंज़िल-ए-आफ़ात-ए-आलम से गुज़र जाना
डरें क्यूँ मौत से जब है इसी का नाम मर जाना
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
दिल की वीरानियों में हमें ख़्वाहिशें देख टोका करें
हम यतीमों के डर से डरें बिन बताए न जाया करें
अनंत गुप्ता
ग़ज़ल
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
बस तुझ से हों ख़ाइफ़ न डरें और किसी से
'नक़वी' से क़लमकारों को सच्चाई अता कर
सय्यद मोहम्मद अहमद नक़वी
ग़ज़ल
ये भेद है कि न मुर्दे डरें फ़रिश्तों से
बना के क़ब्र बनाते हैं क़ब्र पर ता'वीज़
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
न डरें ख़ुल्द में जाते हुए जो रिज़वाँ से
उस के दरवाज़े पे रुक जाएँ ख़बर-दार के साथ