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ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
उड़ाएँगे डिनर में सारे लीडर मुर्ग़ियाँ कब तक
रेआया कुंडियों में ढूँढ खाए हड्डियाँ कब तक
रऊफ़ रहीम
ग़ज़ल
सैंकड़ों तरह की चीज़ें थीं डिनर में लेकिन
ये तो फ़रमाएँ वहाँ क़ीमा-ए-ख़िंज़ीर भी था
हाशिम अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं