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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
मैं भी अपनी झोंक में था कुछ वो भी अपने ज़ो'म में था
होती भी है कुछ मेरे यारो प्यार की कुछ डोर बहुत
उमर अंसारी
ग़ज़ल
मैं हूँ पतंग-ए-काग़ज़ी डोर है उस के हाथ में
चाहा इधर घटा दिया चाहा उधर बढ़ा दिया
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
जीवन-डोर के पीछे हैराँ भागती टोली बच्चों की
गलियों गलियों नंगे पाँव धूल उड़ाती दो-पहरें
इशरत आफ़रीं
ग़ज़ल
वक़्त की ठोकरों में है उक़दा-कुशाइयों को ज़ो'म
कैसी उलझ रही है डोर नाख़ुन-ए-होश्यार में