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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ख़ुदी की शोख़ी ओ तुंदी में किब्र-ओ-नाज़ नहीं
जो नाज़ हो भी तो बे-लज़्ज़त-ए-नियाज़ नहीं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
दिल में दर्द-ए-इश्क़ ने मुद्दत से कर रक्खा है घर
पर उसे आलूदा-ए-हिर्स-ओ-हवा पाते हैं हम
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
हवा के फ़र्क़ पर कोई बना कर अब्र का ख़ेमा
तनाबें तार-ए-बाराँ की लगा सकता है क्या क़ुदरत
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
वही किब्र है मिरी ख़ाक में वही जहल है मिरी ज़ात में
जो शरार है वो बुझा नहीं जो चराग़ है वो जला नहीं
एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
'सीमाब' किब्र-ओ-नाज़ का अंजाम कुछ न पूछ
सब रफ़्ता रफ़्ता गोर-ए-ग़रीबाँ में आ गए
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
किब्र-ओ-नख़वत है ये किस चीज़ पे बतला वो मुझे
ख़ाक है तेरी बिना क्या है हक़ीक़त तेरी