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ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
इरादा मेरे खाने का न ऐ ज़ाग़-ओ-ज़ग़न कीजो
वो कुश्ता हूँ जिसे सूँघे से कुत्तों का बदन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कुत्तों का इक हुजूम जिलौ में है रात दिन
पतला दयार-ए-हुस्न में आशिक़ का हाल है
क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद
ग़ज़ल
नहीं सोने दिया पल भर भी सारी रात कुत्तों ने
सुनाए सैंकड़ों परकार के नग़्मात कुत्तों ने