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ग़ज़ल
पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा
सब थे नशात-ए-नफ़ा के पीछे हम ने रंज-ए-ज़रर माँगा
ज़फ़र गोरखपुरी
ग़ज़ल
पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा
सब थे नशात-ए-नफ़अ' के पीछे हम ने रंज-ए-ज़रर माँगा
ज़फ़र गोरखपुरी
ग़ज़ल
चैन फ़ुर्क़त में कभी शाम-ओ-सहर ने न दिया
दर्द-ए-दिल ने तो कभी दर्द-ए-जिगर ने न दिया