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ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
क्या दिखा सकता है कोई मो'जिज़े अस्सी करोड़
क्या कभी हल हो सकेंगे मसअले अस्सी करोड़
काज़िम जरवली
ग़ज़ल
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो