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ग़ज़ल
तकिया-ए-ख़ाक-ए-क़नाअत है इधर और उधर
बिस्तर-ए-अतलस-ओ-कमख़ाब वही है कि जो था
सय्यद मुज़फ़्फ़र अहमद ज़िया
ग़ज़ल
अतलस-ओ-कमख़ाब बनती थीं जो प्यारी उँगलियाँ
वक़्त के हाथों हुईं बे-नूर सारी उँगलियाँ
नियाज़ सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
नासिर अंसारी
ग़ज़ल
मुक़द्दर में लिखा कर लाए हैं हम बोरिया लेकिन
तसव्वुर में हमेशा रेशम-ओ-कम-ख़्वाब रहता है
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
अब ख़्वाब नहीं कम-ख़्वाब नहीं, कुछ जीने के अस्बाब नहीं
अब ख़्वाहिश के तालाब पे हर सू मायूसी की काई है
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
याँ सर-ए-पुर-शोर बे-ख़्वाबी से था दीवार-जू
वाँ वो फ़र्क़-ए-नाज़ महव-ए-बालिश-ए-किम-ख़्वाब था
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कतरनें रंज की साँसों में गिरह डालती हैं
अब किसी रेशम-ओ-किम-ख़्वाब का क्या करना है
क़य्यूम ताहिर
ग़ज़ल
नींद की सूरत नहीं देखा ब-जुज़ दाग़-ए-जिगर
पर्दा मेरी आँख में शायद कि है कम-ख़्वाब का