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ग़ज़ल
तालिब बाग़पती
ग़ज़ल
रास्ते में इस क़दर यादों के दोराहे पड़े
आज माज़ी की सड़क हर मोड़ पर खोती रही
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
मुमकिना हद तक मैं अपनी दस्तरस में हूँ मगर
पिछले कुछ दिन से कोई शय मुझ में खोती है मुझे
शहराम सर्मदी
ग़ज़ल
चमन वालों की बद-ज़ौक़ी पे कलियाँ जान खोती हैं
न हैं अहल-ए-नज़र बाक़ी न कोई दीदा-वर बाक़ी
सज्जाद शम्सी
ग़ज़ल
जो रंग-ए-हुस्न-ए-ख़ामोशी है वो खोती है गोयाई
हुआ जब लब-कुशा ग़ुंचा तो बाहर बू निकल आई
जुंबिश ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ऐसे आहु-ए-रम-ख़ुर्दा की वहशत खोनी मुश्किल थी
सेहर किया ए'जाज़ किया जिन लोगों ने तुझ को राम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
हमारी हर नज़र तुझ से नई सौगंध खाती है
तो तेरी हर नज़र से हम नया पैमान लेते हैं