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ग़ज़ल
तुझे क्या ख़बर मिरे बे-ख़बर मिरा सिलसिला कोई और है
जो मुझी को मुझ से बहम करे वो गुरेज़-पा कोई और है
नसीर तुराबी
ग़ज़ल
तुझे क्या ख़बर मिरे हम-सफ़र मिरा मरहला कोई और है
मुझे मंज़िलों से गुरेज़ है मेरा रास्ता कोई और है
दर्शन सिंह
ग़ज़ल
दिल के मुआ'मले जो थे उन में से एक ये भी है
इक हवस थी दिल में जो दिल से गुरेज़-पा भी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
है ये वजूद की नुमूद अपनी नफ़स नफ़स गुरेज़
वक़्त की सारी बस्तियाँ अपनी हज़ीमतों में हैं
जौन एलिया
ग़ज़ल
ये क्या अंदाज़ है इतना गुरेज़ अहल-ए-तमन्ना से
ख़ुदा तौफ़ीक़ दे तो अहल-ए-दिल का मुद्दआ समझो