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ग़ज़ल
याद के सूखे गुलाबों से सजा है दिल का बाग़
ज़ख़्म ये गुज़रे दिनों के अब मगर देखेगा कौन
मंज़र भोपाली
ग़ज़ल
दर्द के पीले गुलाबों की थकन बाक़ी रही
जागती आँखों में ख़्वाबों की थकन बाक़ी रही