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ग़ज़ल
मिसाल-ए-गंज-ए-क़ारूँ अहल-ए-हाजत से नहीं छुपता
जो होता है सख़ी ख़ुद ढूँड कर साइल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
वक़्त के हाथों यहाँ क्या क्या ख़ज़ाने लुट गए
एक तेरा ग़म कि गंज-ए-शाईगाँ बनता गया
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
बगूले की तरह किस किस ख़ुशी से ख़ाक उड़ाता हूँ
तलाश-ए-गंज में जो सामने वीराना आता है
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
उड़ाते हैं मज़े दुनिया के हम ऐ 'दाग़' घर बैठे
दकन में अब तो अफ़ज़लगंज अपनी ऐश मंज़िल है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
सर-ब-कफ़ गंज-ए-शहीदाँ में चले जाते हैं
इम्तिहाँ से नहीं डरते तिरे फ़रज़ाना-ए-इश्क़
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
क़त्अ मिक़राज़-ए-ख़मोशी से ज़बाँ को कीजिए
क़ुफ़्ल दे कर गंज पर मिफ़्ताह तोड़ा चाहिए
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
आह ओ फ़ुग़ाँ न कर जो खुले 'ज़ौक़' दिल का हाल
हर नाला इक कलीद-ए-दर-ए-गंज-ए-राज़ है