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ग़ज़ल
टूट गया जब दिल तो फिर ये साँस का नग़्मा क्या मा'नी
गूँज रही है क्यूँ शहनाई जब कोई बारात नहीं
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
एक फ़क़ीर चला जाता है पक्की सड़क पर गाँव की
आगे राह का सन्नाटा है पीछे गूँज खड़ाऊँ की