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ग़ज़ल
ग़ैब-समय के ज्ञान में पागल कितनी तान लगाएगा
जितने सुर हैं साज़ से बाहर उस से ज़ियादा साज़ में चुप
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
मैं सोचता हूँ इस लिए शायद मैं ज़िंदा हूँ
मुमकिन है ये गुमान हक़ीक़त का ज्ञान दे
हिमायत अली शाएर
ग़ज़ल
ऐसी ज्ञान और ध्यान की बातें हम जाने-पहचानों से
तू आख़िर भूला ही क्या था तुझ को क्या याद आएगा
जमीलुद्दीन आली
ग़ज़ल
ज्ञान दिए दुनिया को क्या-क्या लेकिन ख़ुद अंजान रहे
अपने तन पर अपना कुर्ता अक्सर ढीला हो जाता है
शकील आज़मी
ग़ज़ल
फिरता हूँ मैं घाटी घाटी सहरा सहरा तन्हा तन्हा
बादल का आवारा टुकड़ा खोया खोया तन्हा तन्हा
ज्ञान चंद जैन
ग़ज़ल
ज्ञान लुटाने निकला था और झोली में भर लाया प्यार
मैं ऐसा रंग-रेज़ हूँ जिस पे रंग चुनर का चढ़ बैठा