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ग़ज़ल
हुस्न के जाने कितने चेहरे हुस्न के जाने कितने नाम
इश्क़ का पेशा हुस्न-परस्ती इश्क़ बड़ा हरजाई है
जौन एलिया
ग़ज़ल
कौन सियाही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में
मैं ने आँख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
जिस की उल्फ़त पर बड़ा दावा था कल 'अकबर' तुम्हें
आज हम जा कर उसे देख आए हरजाई तो है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
पूछ रही है दुनिया मुझ से वो हरजाई चाँद कहाँ है
दिल कहता है ग़ैर के बस में मैं कहता हूँ मेरे दिल में
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
शोहरत चाहे कैसी भी हो लोग तवज्जोह देते हैं
लाख हसीं मिलते हैं अब तक मुझ जैसे हरजाई को