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ग़ज़ल
कहाँ तक मुझ से हमदर्दी कहाँ तक मेरी ग़म-ख़्वारी
हज़ारों ग़म हैं अनजाने सितारो तुम तो सो जाओ
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
हमदर्दी हमदर्दी में जान ही ले कर टलते हैं
इन ज़ालिम हमदर्दों से जान छुड़ाना सहल नहीं
मेला राम वफ़ा
ग़ज़ल
किसी को मेरे काशाने से हमदर्दी नहीं शायद
हर इक ये पूछता है मेरे काशाने पे क्या गुज़री
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
शाइ'र से हमदर्दी सीखो दुनिया के ग़म-ख़ाने में
जितने ग़म हैं दुनिया भर में इस के माने-जाने हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
बज़्म सजा कर भेंट किए हैं हमदर्दी के चंद अल्फ़ाज़
मेरा दुखड़ा बाँट रहे हैं मेरे ग़म में शामिल लोग
आबिद अदीब
ग़ज़ल
कैसा प्यार कहाँ की उल्फ़त इश्क़ की बात तो जाने दो
मेरे लिए अब उस के दिल से हमदर्दी भी ख़त्म हुई
ताहिर फ़राज़
ग़ज़ल
देखो दोस्त! तुम्हारा मक़्सद शायद हमदर्दी ही हो
मेरा पैकर टूट गिरेगा वो बातें दोहराने से
हुमैरा रहमान
ग़ज़ल
तो वो अंदाज़ जैसे मेरा घर पड़ता हो रस्ते में
पए-इज़हार-ए-हमदर्दी वो जब तशरीफ़ लाए हैं
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
हमदर्दी कौन जताएगा दुनिया को तो हँसना आता है
इस टूटे हुए दिल का क़िस्सा दुनिया वालों को सुनाओ नहीं
अख़्तर आज़ाद
ग़ज़ल
तसल्ली देने वाले ख़ुद मज़ा लेते हैं हँस हँस कर
पस-ए-एहसान-ओ-हमदर्दी दिखावा हम ने देखा है