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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
گيا ہے تقليد کا زمانہ ، مجاز رخت سفر اٹھائے
ہوئي حقيقت ہي جب نماياں تو کس کو يارا ہے گفتگو کا
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अभी कुछ ज़ब्त का यारा मिरी आँखों में बाक़ी है
अभी अश्कों को पलकों की निगहबानी में रहना है
ख़ुशबीर सिंह शाद
ग़ज़ल
सबा अफ़ग़ानी
ग़ज़ल
पलट कर देखने का मुझ में यारा ही नहीं था
नहीं ऐसा कि फिर उस ने पुकारा ही नहीं था
अरशद जमाल सारिम
ग़ज़ल
जाने अब हुस्न लुटाएगा कहाँ दौलत-ए-दर्द
जाने अब किस को ग़म-ए-इश्क़ का यारा होगा