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ग़ज़ल
तुझे खो कर भी तुझे पाऊँ जहाँ तक देखूँ
हुस्न-ए-यज़्दाँ से तुझे हुस्न-ए-बुताँ तक देखूँ
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
चुप रह न सका हज़रत-ए-यज़्दाँ में भी 'इक़बाल'
करता कोई इस बंदा-ए-गुस्ताख़ का मुँह बंद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तुम पर असरार-ए-फ़ना राज़-ए-बक़ा खुल जाते
तुम ने एक बार तो यज़्दाँ को पुकारा होता
परवीन फ़ना सय्यद
ग़ज़ल
वेद उपनिषद पुर्ज़े पुर्ज़े गीता क़ुरआँ वरक़ वरक़
राम-ओ-कृष्न-ओ-गौतम-ओ-यज़्दाँ ज़ख़्म-रसीदा सब के सब
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
मैं हूँ 'अनवर' उन की ज़ात-ए-पाक का अदना ग़ुलाम
है सर-ए-अक़दस पे जिन के रहमत-ए-यज़्दाँ का ताज
अनवर साबरी
ग़ज़ल
वो जिन के तहत झुक जाता था सर असनाम के आगे
वही भूले हुए अहकाम-ए-यज़्दाँ याद आते हैं
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
रहमत-ए-यज़्दाँ से माँगी हम ने दो छींटों की भीक
वो हुआ जल-थल कि बस्ती बह गई सैलाब में