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ग़ज़ल
शहर में था न तिरे हुस्न का ये शोर कभू
मिस्र इस जिंस से इतना न था मामूर कभू
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
ग़ज़ल
वा'दा किया आने का पर आए नहीं हरगिज़
क्या होए यक़ीन आप के इक़रार के ऊपर
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
ग़ज़ल
ख़ुद अपनी काविशों से आब-ओ-दाना ढूँड लेते हैं
परिंदे अपने रहने का ठिकाना ढूँड लेते हैं