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ग़ज़ल
मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था सर-ए-बज़्म रात ये क्या हुआ
मिरी आँख कैसे छलक गई मुझे रंज है ये बुरा हुआ
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
पढ़ता जा ये मंज़र-नामा ज़र्द अज़ीम पहाड़ों का
धूप खिली पलकों के ऊपर बर्फ़ जमी है आँखों में
बशीर बद्र
ग़ज़ल
वो यूँ मिला कि ब-ज़ाहिर ख़फ़ा ख़फ़ा सा लगा
न जाने क्यूँ वो मुझे फिर भी बा-वफ़ा सा लगा
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
ख़ुशी से झूमती फिरती है और फिर मुस्कुराती है
मिरी ताज़ा ग़ज़ल वो याद कर के गुनगुनाती है