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ग़ज़ल
हुस्न-ए-नज़र-फ़रेब में किस को कलाम था मगर
तेरी अदाएँ आज तो दिल में समा के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
फड़क उठ्ठा कोई तेरी अदाए मा-'अरफ़ना पर
तिरा रुत्बा रहा बढ़-चढ़ के सब नाज़-आफ़रीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
एक सितम और लाख अदाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
तिरछी निगाहें तंग क़बाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
अदाएँ देखने बैठे हो क्या आईने में अपनी
दिया है जिस ने तुम जैसे को दिल उस का जिगर देखो