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ग़ज़ल
भरम दोनों का क़ाएम है अदा-ए-बे-नियाज़ी से
ज़माना पूछता कब है हमारी क्या ज़रूरत है
ख़्वाजा रब्बानी
ग़ज़ल
भरम दोनों का क़ाएम है अदा-ए-बे-नियाज़ी से
ज़माना पूछता कब है हमारी क्या ज़रूरत है
ख़्वाजा ग़ुलामुस्सय्यदैन रब्बानी
ग़ज़ल
ये तिरा सुकूत-ए-रंगीं ये अदा-ए-बे-नियाज़ी
कहीं बुझ के रह न जाएँ मिरी रूह के शरारे
होश बिलग्रामी
ग़ज़ल
वो करम न हो सितम हो कोई बात कम से कम हो
ये अदा-ए-बे-नियाज़ी मिरे ग़म-गुसार क्या है
वारिस किरमानी
ग़ज़ल
मर्हबा सद मर्हबा जज़्ब-ए-वफ़ा कामिल है आज
वो अदा-ए-बे-नियाज़ी ग़म-गुसार-ए-दिल है आज
रशीद शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
मर्हबा-सद-मर्हबा जज़्ब-ए-वफ़ा कामिल है आज
वो अदा-ए-बे-नियाज़ी ग़म-गुसार-ए-दिल है आज