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ग़ज़ल
क़त्ल अमीर-ए-शहर का लाडला बेटा कर गया
जुर्म मगर ग़रीब के लख़्त-ए-जिगर के सर गया
मिर्ज़ा शारिक़ लाहरपुरी
ग़ज़ल
क़ुसूर मेरा यही था कि बे-क़ुसूर था मैं
अमीर-ए-शहर ने फिर भी जला दिया मुझ को