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ग़ज़ल
साँझ-समय कुछ तारे निकले पल-भर चमके डूब गए
अम्बर अम्बर ढूँढ रहा है अब उन्हें माह-ए-तमाम कहाँ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
अम्बर भी नीला नीला है दरिया भी नीला नीला
उन दोनों ने ज़हर पिया हो ऐसा भी हो सकता है
सय्यद सरोश आसिफ़
ग़ज़ल
उस ने ख़ुद को खो कर मुझ में एक नया आकार लिया है
धरती अम्बर आग हवा जल जैसी ही सच्चाई अम्माँ
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
दुआ को उट्ठे हैं हाथ 'अम्बर' तो ध्यान आया
ये आसमाँ सुर्ख़ हो चुका था वबा से पहले