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ग़ज़ल
खुल जा सिम-सिम खुल जा सिम-सिम कब तलक चिल्लाएगा
तू अली-बाबा नहीं है तोड़ दे ताले न देख
तनवीर गौहर
ग़ज़ल
गरचे खोला भी नहीं तू ने अभी बाब-ए-सुख़न
क्या क़यामत है 'मुज़फ़्फ़र' कि दकन काँपता है
मुज़फ्फ़र अहमद मुज़फ्फ़र
ग़ज़ल
किताब ज़ीस्त में बाब-ए-अलम भी हो महफ़ूज़
सियाह-रात का मंज़र सहर में रक्खा जाए
अमानुल्लाह ख़ालिद
ग़ज़ल
घिरे हुए हैं अगर बर्क़-ओ-बाद-ओ-बाराँ में
तो क्या हुआ कि किनारे की है अभी तक आस
इम्तियाज़ अली अर्शी
ग़ज़ल
अभी जौहर करूँगा अपना वर्ना सच बता मुझ को
तिरी तेग़-ए-निगह ने मशवरा क्या मेरी जाँ बाँधा
करामत अली शहीदी
ग़ज़ल
क्यूँ नहीं मिलता अभी तक तिश्ना-लब हैं बादा-ख़्वार
क्या तिरा साग़र भी साक़ी जाम-ए-कौसर हो गया