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ग़ज़ल
बुत बने हैं यूँ तो हम बातें बनाते हैं हज़ार
बात लेकिन वस्ल की असलन बता सकते नहीं
रंगीन सआदत यार ख़ाँ
ग़ज़ल
है जिंस परी सा कुछ आदम तो नहीं असलन
इक आग लगा दी है उस अमर्द-ए-ख़ुश-गप ने
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
चारागर हाजत-ए-मरहम नहीं उन को असलन
ज़ख़्म-ए-दिल लज़्ज़त-ए-ईसार से भर जाते हैं
शेर सिंह नाज़ देहलवी
ग़ज़ल
जुम्बिश-ए-तेग़-ए-निगह की नहीं हाजत असलन
काम मेरा वो इशारों ही में कर जाते हैं
कल्ब-ए-हुसैन नादिर
ग़ज़ल
विसाल-ए-महबूब की तमन्ना किसी पर इज़हार की न असलन
क़िरान-ए-सादैन मैं ने पूछा जो कोई अख़्तर-शुमार आया
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
मिरा दिल दाद-ख़्वाह-ए-ज़ुल्म असलन हो नहीं सकता
मुरव्वत मुँह को सी देती है शिकवा हो नहीं सकता
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
ख़ूब सा जी खोल कर आवारा कर ऐ इश्क़-ए-यार
ख़ौफ़-ए-रुस्वाई नहीं असलन दिल-ए-बेबाक को
मीर कल्लू अर्श
ग़ज़ल
तबीब आरवी
ग़ज़ल
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ