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ग़ज़ल
दिलों में जिन के ग़म-ए-अहल-ए-कारवाँ न रहा
पहुँच सकेगा न मंज़िल पे कारवाँ उन का
अमजद अली ग़ज़नवी
ग़ज़ल
ज़ुल्मतों का रोना क्या अहल-ए-कारवाँ होश्यार
उस तरफ़ हैं रहज़न भी जिस तरफ़ उजाला है
शाहिद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जुनूँ ने सौंप दी ख़िरद के हाथ रस्म-ए-रहबरी
लो अहल-ए-कारवाँ अमीर-ए-कारवाँ बदल गया
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
था तुर्फ़ा शोर अहल-ए-कारवाँ में अपने लुटने का
मगर निकली तो मेरे कारवाँ तक बात जा पहुँची
किरण काश्मीरी
ग़ज़ल
दुआएँ माँगते हैं अहल-ए-कारवाँ 'तलअ'त'
कि राहज़न कोई हम-शक्ल-ए-रहनुमा न मिले
तलअत सिद्दीक़ी नह्टोरी
ग़ज़ल
एक को एक की ख़बर मंज़िल-ए-इश्क़ में न थी
कोई भी अहल-ए-कारवाँ शामिल-ए-कारवाँ न था