aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
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परिणाम "अहल-ए-किताब"
ऐ मिरी गुल-ज़मीं तुझे चाह थी इक किताब कीअहल-ए-किताब ने मगर क्या तिरा हाल कर दिया
मैं अहल-ए-किताब को हमेशापढ़ता हूँ किताब से ज़ियादा
दूसरे की किताब को न पढ़ेंऐसे अहल-ए-किताब देखे हैं
आने वाला इंक़लाब आया नहींक्या कोई अहल-ए-किताब आया नहीं
ख़ास चश्म-ए-करम है रब की 'सबीन'मुझ को अहल-ए-किताब रख्खा है
खो चुकी सारी बसीरत सो चुके अहल-ए-किताबआसमानों से कोई ताज़ा पयाम आया तो क्या
निकल रहे हैं अबु-जेहल ही के रिश्ते-दारकिसी ज़माने में अहल-ए-किताब थे लेकिन
मैं चुनती रहती हूँ एहसास से गुँधे हुए लफ़्ज़दुआ करो कि मैं अहल-ए-किताब हो जाऊँ
किताबी चेहरा जो देखा तो बढ़ के चूम लियाअदब के नाम पे अहल-ए-किताब क्या करते
जहान-ए-इल्म का बाब-ए-निसाब होते हुएभटक रहा हूँ मैं अहल-ए-किताब होते हुए
जनाब-ए-'शान' ये ज़र्रा-नवाज़ी किस की हैजो बे-ज़बाँ था वो अहल-ए-किताब कैसे हुआ
जो भी है दास्तान-ए-अहल-ए-वफ़ादर्द-ओ-आलाम की कहानी है
और ही ढंग से तंज़ीम-ए-गुलिस्ताँ होतीदूर-अंदेश अगर अहल-ए-गुलिस्ताँ होते
हम ने क़ुर्बान किए इश्क़ में जान-ओ-दिल भीहुरमत-ए-अहल-ए-वफ़ा हो ये ज़रूरी तो नहीं
मिज़ाज-ए-अहल-ए-दिल की इम्तियाज़ी शान तो देखोजो दुश्मन जान-ओ-दिल का है उसी से प्यार हो जाए
दर्स-ए-उल्फ़त है ज़माने के लिए मेरा जुनूँशौक़ से अहल-ए-बसीरत मुझ को दीवाना कहें
इश्क़ वो इश्क़ है जो जज़्ब-ओ-असर तक पहुँचेहुस्न वो हुस्न है जो अहल-ए-नज़र तक पहुँचे
अहल-ए-जहाँ को मुझ से अदावत है क्या करूँये तर्ज़-ए-इंतिक़ाम-ए-मोहब्बत है क्या करूँ
ख़ाक छानी जहान की क्या क्याकोई अहल-ए-नज़र नहीं देखा
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