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ग़ज़ल
अज़ल से गो मज़ाक़-ए-अहल-ए-दुनिया और ही कुछ है
हक़ीक़त में मगर जीने का मंशा और ही कुछ है
हक़्क़ी हज़ीं
ग़ज़ल
अहल-ए-दुनिया देखते हैं कितनी हैरानी के साथ
ज़िंदगी हम ने बसर कर ली है नादानी के साथ
महताब हैदर नक़वी
ग़ज़ल
अहल-ए-दुनिया वाक़िफ़-ए-असरार-ए-पिन्हाँ हो गए
दास्तान-ए-ग़म सुना कर हम पशेमाँ हो गए
विशनू कुमार शाैक़
ग़ज़ल
अह्ल-ए-दुनिया ने सिखाया मुझे हैराँ होना
कैसे इंसाँ हैं कि आता नहीं इंसाँ होना
जगदीश सहाय सक्सेना
ग़ज़ल
मैं हूँ और अफ़्सुर्दगी की आरज़ू 'ग़ालिब' कि दिल
देख कर तर्ज़-ए-तपाक-ए-अहल-ए-दुनिया जल गया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ठीक 'ग़ालिब' ही के दिल की तरह था 'हाशिम' का दिल
देख कर तर्ज़-ए-तपाक-ए-अहल-ए-दुनिया जल गया