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ग़ज़ल
मैं क्यूँ ज़बाँ से वफ़ा का यक़ीं दिलाऊँ तुम्हें
तुम आज़माओ मुझे और मैं आज़माऊँ तुम्हें
क़ाज़ी एहतिशाम बछरौनी
ग़ज़ल
'ग़ौरी' तो ला-शु'ऊर है मुझ को दिखे तो मैं
फ़न अपना आज़माऊँ तुझे देखने के बा'द