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ग़ज़ल
जब दिल में ज़रा भी आस न हो इज़्हार-ए-तमन्ना कौन करे
अरमान किए दिल ही में फ़ना अरमान को रुस्वा कौन करे
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
दुनिया है ये किसी का न इस में क़ुसूर था
दो दोस्तों का मिल के बिछड़ना ज़रूर था
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
आरज़ू को दिल ही दिल में घुट के रहना आ गया
और वो ये समझे कि मुझ को रंज सहना आ गया
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
आया है मुझे फिर याद वो ज़ालिम गुज़रा ज़माना बचपन का
हाए अकेले छोड़ के जाना और न आना बचपन का
आनंद बख़्शी
ग़ज़ल
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
अरमाँ को छुपाने से मुसीबत में है जाँ और
शोले को दबाते हैं तो उठता है धुआँ और
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
मोहब्बत से भी कार-ए-ज़िंदगी आसाँ नहीं होता
बहल जाता है दिल ग़म का मगर दरमाँ नहीं होता
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
तिरा लुत्फ़ आतिश-ए-शौक़ को हद-ए-ज़िंदगी से बढ़ा न दे
कहीं बुझ न जाए चराग़ ही उसे देख इतनी हवा न दे
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
मिरी बातों पे दुनिया की हँसी कम होती जाती है
मिरी दीवानगी शायद मुसल्लम होती जाती है