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ग़ज़ल
दिल-ए-बीमार को हमदम हवा-ए-सैर-ए-गुल क्या हो
कि है ना-मो'तदिल आब-ओ-हवा-ए-गुलसिताँ अब तक
वासिफ़ देहलवी
ग़ज़ल
अगर इस शहर की आब ओ हवा तब्दील हो जाए
तो फिर सब कुछ ब-जुज़ नाम-ए-ख़ुदा तब्दील हो जाए
उबैद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
क्या ख़बर थी आतिशीं आब-ओ-हवा हो जाऊँगा
ख़ाक ओ ख़ूँ का मुस्तक़िल मैं सिलसिला हो जाऊँगा