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ग़ज़ल
जो देखो ग़ौर से कुछ कम नहीं है ये भी 'तूर'
इक इज़्तिरार सुकून-ए-हवा में रक्खा है
कृष्ण कुमार तूर
ग़ज़ल
नक़ाब उठने की जुरअत कहीं न कर बैठे
बढ़ाए क्यूँ दिल-ए-मुज़्तर का इज़्तिरार लिहाज़