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ग़ज़ल
निकलवाया मुझे महफ़िल से धक्के दे के ज़ालिम ने
नज़र आया है बरसों बाद ये आली मक़ाम अपना
हमीद दिलकश खंड्वी
ग़ज़ल
मीना नक़वी
ग़ज़ल
जुनूँ की फ़ितरत-ए-आली पे बार है ऐ दोस्त
वो बंदगी जो मक़ाम-ए-सवाल से गुज़रे